बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जहाँगीर के चित्रों पर किस पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
जहाँगीर के शासनकाल में बहुत से यूरोपीय व्यापारी भारत आए थे। पुर्तगाली लोग तो अकबर के समय से ही भारत में आ रहे थे। इस समय ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत से सम्पर्क स्थापित करने प्रारम्भ कर दिए थे।
इंग्लड के राजदूत सर टामस रो जहाँगीर के दरबार में व्यापारिक विचार विमर्श हेतु आए थे। इस व्यापारिक सम्पर्क के परिणाम स्वरूप यूरोपीय कलाकारों ने भी मुगल दरवार में आना प्रारम्भ कर दिया जो अपने साथ यूरोपीय कलाकृतियों को भी लाए। इन कलाकृतियों ने मुगल चित्रकारों को अत्यन्त प्रभावित किया।
इसी के साथ-साथ सर टामस रो ने भी जहाँगीर को कई कलाकृतियाँ भेंट की और दावा किया कि उनके द्वारा भेंट की गयी कलाकृतियों की कोई भी कलाकार भारत में नकल नहीं कर सकता. सम्पूर्ण वृतान्त को सर टामस रो ने इस प्रकार प्रस्तुत किया, “बादशाह को मैंने एक चित्र दिया था। मुझे विश्वास था कि भारत में उसकी नकल होना असम्भव है। एक दिन वादशाह ने मुझे बुलाकर पूछा कि उस चित्र के तद्वत् प्रतिकृतिकार को क्या दोगे। मैंने कहा चित्रकार का पुरस्कार 50 रूपये है। उत्तर मिला मेरा चित्रकार मंसबदार है उसके लिए यह पुरस्कार बहुत थोड़ा है। रात में में पुनः बुलाया गया ओर मुझे मेरे चित्र जैसे छ: चित्र दिखाए गए कि इनमें से अपना चित्र छाँट लो। कुछ कठिनता से मैं अपना चित्र पहचान पाया और मैंने प्रतिकृतियों के अन्तर बताए । उपरान्त पुरस्कार का मोल-भाव पुनः प्रारम्भ हुआ । "
यह वृतान्त यह सिद्ध करता है कि भारतीय कलाकार प्रत्येक कलम की प्रतिकृति करने में निश्चित रूप से सिद्धहस्त हैं। इस समय का एक प्रमुख कलाकार विशनदास हुआ जिसकी शैली मुगल एवं पाश्चात्य विशिष्टताओं का अनुपम सामंजस्य प्रस्तुत करती है ।
इसी संदर्भ में एक विशिष्ट चित्र सलीम का जन्म है। रंग संयोजन छाया-प्रकाश, मानवाकृति रचना, परिप्रेक्ष्य आदि में पाश्चात्य प्रभाव को सहज ही अनुभव किया जा सकता है।
रायकृष्ण दास भी इसी संदर्भ में विचार विमर्श करते हैं, जहाँगीर कालीन चित्रों में इतनी स्वाभाविकता कहाँ से आई। उत्तर देने के लिए सीधा मार्ग है- फिरंगी प्रभाव से । किन्तु इसी से सन्तोष नहीं किया जा सकता है। निसन्देह यह बात सर्वविदित है कि जहांगीर के समय में यहाँ यूरोप के चित्र काफी तादाद में आ चुके थे ओर आ रहे थे इतना ही नहीं जहाँगीर उनकी कदर और संग्रह भी करता था। इस समय यहाँ के कारीगर इनकी प्रतिकृति और उनके आधार पर स्वतन्त्र चित्र भी बनाते थे। जहाँगीर कालीन कुछ चित्रों की पृष्ठिका व अंश विशेष में यूरोपीय दृश्य भी नकल किए गए हैं, फिर भी देखना तो यह है उक्त स्वाभाविकता यूरोपीय शैली है। या स्वतन्त्र हमारा उत्तर है कि वह स्वतन्त्र है।
परन्तु यह भी सत्य है कि इस विदेशी प्रभाव के फलस भी मुगल कलाकारों ने निजत्व मौलिकता को नहीं त्यागा । इसलिए यह कहा जा सकता है कि जहाँगीर काल निर्मित अधिकांश चित्र भारतीय हैं और जो विदेशी प्रभाव भी चित्रों में था उसने भारतीयता का जामा ओढ़ लिया।
इस समय के कलाकार केवल भारतीय तकनीक में ही नहीं वरन् पाश्चात्य तकनीक में भी सिद्धहस्त थे जहाँगीर के समय में स्त्रियाँ भी चित्रण करती थी। भारत कला भवन में एक चित्र मिलता है जिसमे एक महिला चित्रकार एक नारी का व्यक्तिचित्र बनाती हुई दर्शायी गयी है।
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